सद्दाम हुसैन को बड़े-बड़े महल बनाने के अलावा बड़ी-बड़ी म’स्जिदें बनवाने का भी शौक था. एक इसी तरह की मस्जिद उन्होंने मध्य बग़दाद में बनवाई थी जिसे ‘ उम्म अल मारीक’ नाम दिया गया था.

इसको ख़ास तौर से 2001 में सद्दाम हुसैन की सालगिरह के लिए बनवाया गया था. ख़ास बात ये थी कि इसकी मीनारें स्कड मि’साइल की शक्ल की थीं.

ये वही मिसाइलें थीं जिन्हें सद्दाम हुसैन ने खा”ड़ी यु’द्ध के दौरान इस’रा’इल पर द’ग़वाया था.

सद्दाम हुसैन

‘ऑपरेशन डे’सर्ट स्टॉ’र्म’ जो 43 दिनों तक चला था, की याद दिलाने के लिए इन मीनारों की ऊँचाई 43 मीटर रखी गई थी.

सद्दाम हुसैन की जीवनी लिखने वाले कॉन कफ़लिन लिखते हैं, “सद्दाम की बनवाई एक म’स्जिद में सद्दाम के ख़ू”न से लिखी गई एक कुरान रखी हुई है.

उसके सभी 605 पन्नों को लोगों को दिखाने के लिए एक शीशे के केस में रखा गया है. मस्जि’द के मौल’वी का कहना है कि इसके लिए सद्दाम ने तीन सालों तक अपना 26 लीटर ख़ू”न दिया था.”

सद्दाम हुसैन

सद्दाम पर एक और किताब, ‘सद्दाम हुसैन, द पॉलिटिक्स ऑफ़ रिवेंज’ लिखने वाले सैद अबूरिश का मानना है कि सद्दाम की बड़ी-बड़ी इमारतें और मस्जिदें बनाने की वजह तिकरित में बिताया उनका बचपन था, जहाँ उनके परिवार के लिए उनके लिए एक जूता तक ख़रीदने के लिए भी पैसे नहीं होते थे.

दिलचस्प बात ये है कि सद्दाम अपने जिस भी महल में सोते थे, उन्हें सिर्फ़ कुछ घंटों की ही नींद लेनी होती थी. वो अक्सर सुबह तीन बजे तैरने के लिए उठ जाया करते थे.

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